Mental Health issues & मानसिक स्वास्थ्य और ह्रदय सामंजस्य, in Hindi
आज हम आपको मानसिक शांति और स्वास्थ्य के लिए ह्रदय का कितना योगदान होता है जानेंगे।
वर्तमान समय में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बहुत ज्यादा बढ़ती जा रही है । जिसको कम करने के लिए हम तरह तरह की दवाइयां खाते है और बड़े बड़े डॉक्टर से भी मिलते है । जिसमे ये दवाइयां बस कुछ ही समय के लिए असर दिखा पाती हैं और बाद में उनका असर कम होने लगता है ।
आज के समय मानसिक समस्यायों को दूर करने के लिए कई प्रकार के उपाय उपलब्ध हैं जिनमे
योगा करना
ताज़ी हवा में सुबह जल्दी उठ कर टहलना
मनोचिकित्सक की सलाह
आयुर्वेद उपचार जैसी व्यवस्थाएं शामिल है।
परंतु इन सब से पहले हमें अंतर्मन में स्वयं को जानना अत्यंत आश्यक है क्योंकि किसी भी समस्या या रोग को ठीक करने के लिए उसकी जड़ तक जाना अत्यंत आवश्यक होता है जिससे हम ये जानने में सफल होते है कि समस्या उत्पन्न कहा से हुई ।
मानसिक स्वास्थ्य में ह्रदय की भूमिका
अब यदि हम मानसिक स्वास्थ्य के लिए ह्रदय की भूमिका के विषय में बात करे तो हमारा मस्तिष्क हमे तर्क देता है औऱ समस्या को हल करने में तार्किक ढंग से समाधान देता है परंतु यदि इस क्रम में हम अपने ह्रदय को भी शामिल करदे क्योंकि ह्रदय हमे समस्या की गहराइयों में ले जाता है हमे केवल एक तरफ़ा विचार करने से भी रोकता है जिससे हम अपने भविष्य में अपने फैसलों के लिए प्रताड़ित महसूस नही करते है क्योंकि हम केवल मस्तिष्क से लिये गए फैसलो के लिए कभी कभी सभी पक्षो के विषय में सोच नही पाते हमे केवल वर्तमान के लाभ ही दिखाई देते है।जिसमे हम भविष्य का नही सोच पाते परंतु यदि हम मस्तिष्क और ह्रदय के बीच संबंध बिठा सके तो हम अपने मन मस्तिष्क को काफी शांत रख सकते है । क्योंकि कई बार हम कई मानसिक समस्याओ के लिए हम स्वयंम ही उत्तरदायी होते है जिसमे हम स्वयं ही अपने मस्तिष्क को आवश्यकता से अधिक चिंतन करके प्रताड़ित तो करते ही है साथ ही साथ मानसिक बीमारियों को भी जन्म देते है।
इस ही क्रम में यदि किन्ही समस्यों का हल करते समय हमें आंतरिक तर्क वितर्क आवश्य रूप से कर लेना चाहिए ।क्योंकि आज वर्तमान समय में हर व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से कही न कही मानसिक रूप से उलझने महसूस कर रहा है जिसमे हमारे गलत फैसले भी कही न कही उत्तरदायी होते है जिसमे हम मन ही मन सोचते रहते है और अपना मन और मस्तिष्क बीमार करते है । परंतु यदि हम इन दोनो में सामंजस्य बिठाने में सफल रहते है तो हमे ज़्यादा सोचना नही पड़ता और अपने अंतर्मन में भी कही न कही शांति महसूस करते है । और आंतरिक उथल पुथल की समस्या भी कम होगी।
स्वस्थ रहे निरोगी रहे।
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