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क्या जताना जरूरी है ????? क्यों तुले है हम उगते सूरज को बदलो से ढकने पर


आज हम बेहद ही महत्वपूर्ण और संवेदनशील विषय पर चर्चा करने वाले है जो वर्तमान की परिस्थितियों को अलग ढंग से ना पेश किए जाने के लिए जरूरी भी है जिसमे हम क्यों बेवजह सौहार्द को हानि पहुंचाने का कारण बन रहे है क्यों स्वयं ही अपने आप को कटगड़े में खड़े करने की कोशिश कर रहे है जबकि देश अपने अथक प्रयासों से अपनी प्रतिभा को विश्व के समक्ष प्रस्तुत कर रहा है और विश्व पटल पर छाने के लिए अग्रणी है। स्वागत है आपका uveeright पर


हमारे पास गीता  , रामायण , वेद , उपनिषद , विज्ञान, समुद्रशास्त्र, नक्षत्र शास्त्र शिल्पकला ज्ञान जैसे विभिन्न ज्ञान पहले से ही मौजूद है फिर भी हम क्यों आज भी समय अंतराल पर अव्यवस्थित हो जाते है जब इतना सबकुछ हमारे पास है फिर भी हम पिछड़े हुए क्यों है।

नीम करौली बाबा, जिनसे प्रेरणा पाकर मार्क जुकरबर्ग ने फेसबुक की स्थापना की लेकिन एक विदेशी ही क्यों? क्यों हम अभी तक गूगल जिसे प्रतिष्ठित मंच की स्थापना नही कर पाए, क्यों एमएस ऑफिस जैसा सॉफ्टवेयर नही बना पाए? कहते है पहला हवाई जहाज भारत में ही बना था लेकिन उस खोज को मुकाम पर नही पहुंचा पाए ? ऐसे अनगिनत सवाल हमेशा हमारे मन में उठते है एक अच्छे सामाजिक और देश प्रेमी के मन में उठना ही चाहिए ।






भारत विविधताओं का देश है जहां विभिन्न प्रकार की संस्कृतियां एक साथ निवास करती है, जिसका लोहा दुनिया का हर व्यक्ति मानता है परंतु वर्तमान में वर्चस्व की लड़ाई धीरे धीरे अपने पांव पसारने लगी है ।
भारत को आजाद हुए 75 साल  हो गए है लेकिन आज भी हम पिछड़े हुए है सरकार बदलती रहेंगी लेकिन ज्ञान सदैव तत्पर रहता है हमारे हित के लिए हमेशा से ही एजेंसिया काम करती रहती है जिसका जिम्मा सरकारों पर होता है की वह देश का कितना हित चाहती है हालाकि वर्तमान में कुछ सरकारें देश हित के लिए बेहतर काम करने के लिए तत्पर है। परंतु हम आज भी कही न नहीं अपनी वर्चस्व की मानसिकता के चलते अपने आप को पीछा करते जा रहे है । अपनी विरासत को बचाना हमारा हक और कर्तव्य दोनो ही है परंतु तरीका बेहद ही दुखी कर देने वाला है जो हमे हमारे हित की पूर्ति की ओर न ले जाते हुए आंतरिक युद्ध की ओर ले जा सकता है पहले धर्म फिर जाति । 
विदेशी और इस्लामिक देश यही तो करते आए हैं हमारे साथ और वाश्विक मंच पर हम घेरे जाते है। 

देश प्रेम और भटकता ज्ञान

उन्होंने हमपर 100 साल राज किया और हमारी 5000 साल से भी पुरानी परंपरा को हिला के रख दिया। हम संभाले  संभालते सीख ही रहे थे की आ गए कुछ धर्म के ठेके दार अपनी वर्चस्व प्रथा की नई कहानी गड़ने के लिए 
   क्या ये उच्च शिक्षित आत्म ज्ञानी व्यक्ति ईश्वर से प्रेम नहीं करते जो देश हित के लिए नीतियां बनाती है जिनका नाम आज तक दुनिया ढंग से नहीं जानती, ये संगीतज्ञ जो हिंदी+ अन्य भाषा ( अंग्रेजी, अरबी, यहूदी, तथा अन्य) का कांसेप्ट ले कर आ रहे है ये देश प्रेमी नहीं है या वो विदेशी अपने धर्म से प्रेम नहीं करते जो प्रभु यीशु के जन्म दिन पर उत्सव मनाते है और होली पर रंगों का त्योहार भी, एक डॉक्टर ,शिक्षक इंजीनियर, पायलट  जो निस्वार्थ भाव से सभी धर्म जाति को सेवाए प्रदान करते आ रहे है । ये मानव जाति के लिए निस्वार्थ भाव से काम करते आ रहे है बिना किसी चीज का  क्रेडिट लिए ।

सोच का फर्क 

हम आज अंतर राष्ट्रीय मंच पर सीईओ जैसे पद पाकर गद गद महसूस करते है कोई प्रतिष्ठित विदेशी महिला साड़ी धारण कर ले तो मीडिया उसे कवर कर बढ़ा चढ़ा कर दिखाती है, लेकिन विदेशी अपनी परंपरो को दुनिया पर हावी करके सामान्य भाव दर्शाते है , हमारे भारत में न कल प्रतिभा की कमी थी ना आज परंतु हमारी सोच 75 सालो में कुछ ही बदल पाई जिसमे हम अभी भी एक रुपता नही ला पाए।

कौन ज्यादा समझदार

आज दुनिया भर के देश भारत को लुभाने में लगे हैं हमारा पहनावा हमारे व्यंजन, हमारे त्योहार का उत्सव मनाना,हमारे अभिनेता अथवा नेताओ की तारीफ जैसे विभिन्न मानसिक कलाओं का प्रयोग करके जो वो हमेशा से करते आ रहे है लेकिन जब बात प्रथम पायदान की आती है तो मानो न मानो वो ही श्रेष्ठ है , भारत में हुए 2023 वर्ल्ड कप तो याद ही होगा की भारत 10 मैच जीतने के बाद  देश फाइनल में हार गया  उसी वर्ल्ड कप में एक ऑस्ट्रेलियाई बॉय जो जय श्री राम का नारा अपनी बुलंद आवाज में लगा रहा था । क्या वो अपने देश से प्रेम नहीं करता था वर्ड कप ऑस्ट्रेलिया जीती अगले 4 सालो तक उससे ज्यादा कोई खुश नही होगा। ये रणनीति के तहत काम करते है जो इनके लिए आम बात है । दुनिया हमेशा से हमारा उपयोग ही तो करती आई है और रही बात विश्व में प्राप्त प्रतिष्ठित स्थानों की तो ये कहने में किसी को देर नही लगती की तुमने हमें सेवा दी और हमने उसका मूल्य।  

हिंदू परंपरा 

हिंदू धर्म हजारों वर्षो से चला आ रहा है इसमें कोई संदेह नहीं की सनातन धर्म अविनाशी है परंतु जब मैं ही श्रेष्ठ का भाव हमे घेरता गया तब तब हमे संकट का सामना करना पड़ा है जिसके कारण हमे कई बार विघटन का भी सामना करना पड़ा है जिसके चलते नए नए धर्म आकार लेने लगे । 
हमारे हफ्ते के सातों दिन किसी न किसी देवी या देवता को समर्पित है कैलेंडर त्यौहारों से भरा पड़ा है लेकिन क्या हम इतने धार्मिक और सात्विक है ? ये भी एक प्रश्न है आज हम जब विश्व पटल पर खड़े होने की ओर अग्र शील है तो क्या जरूरत है मैं ही श्रेष्ठ हूं।  
"श्रेष्ठता का सबसे बड़ा गुण यही है की वह कभी नहीं कहता की मैं श्रेष्ठ हूं।" 
 और रही बात सम्मान पर आन की तो तलवार और तीर कमान जैसी विभिन्न युद्ध कला हजारों वर्षों से केवल मनोरंजन के लिए नहीं बनी है ।   

                                                     


      
 













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