1857 की क्रांति से लेकर देश आजाद होने तक की कहानी तथा क्यों खास है इस बार का 15अगस्त 2023 in Hindi
सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा ये शब्द मात्र नहीं है ये उन वीर क्रांतिकारी के ह्रदय में गुंजायमान ध्वनि है जिसने उन स्वतंत्रता सेनानी को करो या मरो की भावना से भर दिया।
स्वागत है आपका uveeright पर जिसमे आज हम १८५७ की क्रांति स्वतंत्रता दिवस विशेष और और कुछ आजादी के समय के कुछ रोचक तथ्यों पर चर्चा करेंगे ।
१८५७ से लेकर देश आजाद होने तक की कहानी
१८५७: क्रांति की वो चिंगारी जिसने देश की आज़ादी में नील के पत्थर का काम किया। १० मई १८५७ को भारत में आज़ादी के लिए ब्रटिश राज के खिलाफ द्रोह की भावना ने अंग्रेजों ने स्पष्ट रूप से अनुभव किया। जिसमें झांसी की रानी जिनकी कोई पुत्र संतान न होने पर उनका राज अंग्रेज़ हडपना की मंशा रखते थे परंतु अपने राज को अंग्रेजी हुकूमत से बचने के लिए झांसी की रानी ने एक बालक को गोद लिया (हालांकि वह बच्चो से अत्यंत प्रेम करती थी)।तो ब्रटिश सरकार ने एक नया रूल लगी किया कि किसी भी राजशाही में उनकी स्वयं की संतान ही राज्य काज को को आगे बढ़ाएगी अर्थात वही पुत्र उस राज्य का अगला राजा होगा नही तो वह राज्य ब्रटिश सरकार के अधीन हो जाएगा। यह अंग्रेजों की चालाकी ही थी जिससे क्रोधित हो कर रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेज़ो के खिलाफ युद्ध छेड दिया और अपनी अंतिम सांस तक बख़ूबी लड़ते लड़ते अपनी जान की आहूति दे दी ।
वही भगतसिंह जो कि अंग्रेजों की सेना में भर्ती थे लेकिन जब अंग्रेज़ो ने चर्बीयुक्त पिस्टल जिसपर कि गाय के मास का अंश लगाा था जिसे मुँह से काटकर खोलना पड़ता था । तथा अन्य भी आन्तरिक कारण जिसमे भारतीय सैनिक और अंग्रेजी सैनिक में भेदभाव किया जाता था से क्रोधित होकर उन्होंने भी अंग्रेज़ो से बगावत की घोषणा कर दी।
इनके अलावा बेगम हजरत महल तात्या टोपे जैसे अनेक क्रांतिकारियों जिन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ मोर्चा खोल दिया ।जिसने ब्रटिश कंपनी की नींव को हिला कर रख देने का कार्य किया ये सभी अलग अलग कारण से अंग्रेजो से लोहा ले रहे थे परंतु इनका मूल उद्देश अंग्रेजी हुकूमत को नकारना ही था ।
अब ब्रेटिश कंपनी डगमगाने लगी लोग इसके खिलाफ आवाज उठाने लगे थे इन सब के कारण अब भी भारत की सत्ता ब्रेटिश सरकार के हाथो चली गई अब सभी फैसले भारत से दूर ब्रेटिश सरकार से पास होकर आने लगी ।
१८५७ की क्रांति के बाद अंग्रेजो ने विस्तार वादी नीति पर लगाम जरूर लगा इस क्रांति ने भारत के लोगो में स्वतंत्रता की भावना व विश्वास को बढ़ाने का कार्य जरूर किया जिससे प्रेरीत भारत के लोगो में आंदोलन तथा ब्रेटिश सरकार के खिलाफ लोहा लेने की भावना का उदय हुआ।
१९ के दशक के शुरुवात में भी भारत को बंगाल विभाजन का सामना करना पड़ा जिसका कारण सरकार ने बंगाल के बड़े छेत्र के कारण ढंग से कार्य का कर पाना बताया परंतु सच में तो हिंदू तथा मुस्लिम समुदाय को लड़वाने का कार्य किया ताकि अंतरित लड़ाई में सबका ध्यान भटक जाए और सरकार के खिलाफ आवाज को दबाया जा सके ।
इन सभी में महात्मा गांधी जी जब विदेश से लौटे तो उन्होंने देश के लिए चंपारण सत्याग्रह , असहियोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह जैसे विभिन्न आंदोलन कर अंग्रेजो के खिलाफ बुलंद आवाज उठाई सुभाष चन्द्र बोस ने जापान जाकर वह की सरकार से देश की स्थिति पर अपनी बात रखी ऐसा कहा जाता है की ब्रेटिश सरकार के अत्याचारों की बात विश्व भर तक पहुंचने के लिए वह हिटलर से मिलने जर्मनी भी गए इन्होंने देश में आजाद हिंद फौज का भी निर्माण किया । "तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा " शब्द इन्ही के मुख से निकले जिसने देश को जोड़ने का कार्य किया । इनके अतिरिक्त लाल बाल और पाल जैसे वीरों ने अपने अपने ढंग से सरकार को धूल चटाई । चंद्र शेखर आजाद ये उन वीर क्रांतिकारी में है जिहोने अंग्रेजो का डट के सामना किया और अन्त में जब एक गोली बची तो वह गोली उन्होंने स्वयं पर चला ली लड़ते लड़ते शाहिद हो गए जिस उम्र में युवा स्वप्न भाव में जीवन जीते है उस समय महज़ २४ वर्ष की उम्र में इन्होंने अंग्रजी हुकूमत से लोहा लेने का कार्य किया और अंग्रेजो की हुकूमत स्वीकार न करने का प्राण लिया और अपनी जान देश के लिए न्योछावर कर दी। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भी बारदौली सत्याग्रह जैसे आन्दोलन शुरू कर दिया थे।
भारत को आजादी दिलाने में महात्मा गांधी , सुभाष चन्द्र बोस, भगत सिंह राजगुरु सुखदेव सरदार वल्लभ भाई जैसे विभिन्न क्रांतिकारियों का विशेष रूप से योगदान रहा है जो कि भारत के इतिहास में अमिट योगदान के रूप में याद रखा जायेगा। जिनमे डॉक्टर भीम राव अम्बेडकर जो की उस समय जातीय पक्षपात के भाव को झेल रहे थे इन्होंने महिला शिक्षा तथा जातीय पक्षपात के खिलाफ लड़ाई लड़ी। इन्हे भारतीय संंविधान का जनक भी कहा जाता है।
इस स्वतंत्रता संग्राम में कई क्रांतिकारियो को अपनी जान गवानी पड़ी जिसके पश्चात १४ अगस्त की मध्यरात्रि के आस पास प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने देश की आजादी की घोषणा की ।
ये थी १८५७ से लेकर देश की आजादी मिलने तक का सफ़र जिसमे कइयों के आपकी जान गवाकर देश को आजाद कराया उन वीर क्रांतिकारियो को हमारा शतशत नमन ।
आजाद भारत की ७५ वी वर्ष गांठ अमृत महोत्सव काल क्यों है खास
इस बार स्वतंत्रता दिवस विशेष उल्लखनीय हैं क्योंकि ये वर्ष हम आजादी का अमृत महोत्सव के रूप में तो माना ही रहे है अपितु इस वर्ष G २०, २०२३की अध्यक्षता भी भारत के पास है । जिससे ये स्वतंत्रता दिवस और भी खास हो जाता है। जिस तरह से भारत अपने बढ़ते कदम तकनीकी , विकसित सेना, औद्योगिक विकास और रक्षा क्षेत्र की ओर विकसित हो रहे है इन सब में ये स्वतंत्रता दिवस विशेष रूप से भारत के लिए नवीन कीर्तिमान स्थापित करने में स्मरणीय रहेगा।
भारत क्रांतिकारियो की भूमि रही है परंतु वर्तमान काल में प्रतिभा की खान या यू कहे तो प्रतिभा निर्यातक कहे तो गलत नहीं होगा क्योंकि जिस तरह भारत वासी देश ही नहीं अपितु विदेश में अपना वर्चस्व स्थापित कर रहे है वो भारत के लिए बेहद सम्मान की बात है । वर्तमान काल में आजादी का अमृत महोत्सव भारतवासियों को प्रभावी कौशल प्रशिक्षण आत्मसम्मान की भावना तथा स्वस्थ भारत की परकल्पना से परिपूर्ण है।
इस बार १५ अगस्त आज़ादी के अमृत काल की ७७वर्ष गांठ के साथ समाप्त होगा तथा G २० की अध्यक्षता भी भारत के पास है
। इस वर्ष भारत को अपना नया सांसद मिला तथा भारत में फिर से सिंगौल परंपरा की शुरुवात की गई जो की सच में २०२३ आज़ादी दिवस पर विशेष रूप से स्मरणीय रहेगा।
इसी वर्ष २०२३ में भारत ने चंद्रयान ३ लॉन्च किया ।
अनसुने तथ्य
1) भारत ने बटवारे के समय बाघी टॉस में पाकिस्तान से जीती थी।
2) आज़ादी के समय लाल किले में शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां जी थे।
3) पाकिस्तान अपना आजादी दिवस १४अगस्त को मानता है ।
4) महिलाओं को मताधिकार अम्बेडकर साहब जी ने ही दिलाया था।
5) कोलंबिया विश्वविद्यालय में टॉप १०० सूची में अम्बेडकर साहब १ स्थान पर है ।
जय हिंद जय भारत
धन्यवाद !

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